बर्थडे स्पेशल : दिवंगत फिल्म स्टार सुनील दत्त से जुड़ी कुछ रोचक बातें…

मुंबई: दिवंगत फिल्म स्टार सुनील दत्त का बर्थ ड छह जून है. सुनील दत्त की एक फ़िल्म ‘जानी दुश्मन’ में उनका एक प्रसिद्ध संवाद है- ‘मर्द तैयारी नहीं करते…हमेशा तैयार रहते हैं.’ उनका यह संवाद उन पर पूरी तरह से फिट बैठता है. एक बस कंडक्टर से एक्टर और फिर सोशल वर्कर से सेंट्रल गर्वमेंट में मिनिस्टर तक का सफर तय करने वाले सुनील दत्त की जीवन यात्रा बेहद ही बेमिसाल रही है। जाने सुनील दत्त की जयंती पर उनसे जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें:

एकीकृत भरत के झेलम जिले के खुर्द गांव में सुनील दत्‍त का जन्‍म छह जून 1929 को हुआ था. अब क्षेत्र अब पाकिस्तान में है. सुनील दत्त का मूल नाम बलराज दत्‍त था. उन्होंने भारत-पाकिस्तान विभाजन के समय बहुत ही करीब से हिंदू-मुस्लिम दंगों को देखा है और उसके भुक्तभोगी भी रहे हैं. देश बंटवारे के बाद सुनील दत्त का परिवार पहले यमुनानगर, पंजाब (अब हरियाणा) और बाद में लखनऊ आ बसा. सुनील दत्त का बचपन काफी संघर्ष भरा रहा है क्योंकि जब वो महज पांच साल के थे तभी उनके पिता दीवान रघुनाथ दत्त का निधन हो गया था.मां कुलवंती देवी ने उनकी परवरिश की.

लखनऊ के बाद सुनील दत्त उच्च शिक्षा के लिए मुंबई आ गये. मुंबई में उन्होंने जय हिंद कॉलेज में एडमिशन लिया. परिवार की माली हालत अच्छी नहीं थी तो उन्होंने मुंबई बेस्ट की बसों में कंडक्टर की नौकरी कर ली. सुनील दत्त का बस कंडक्टर से शुरू हुआ सफर जिस मुकाम तक पहुंचा वो काफी प्रेरक है.कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद सुनील दत्त की नौकरी एक एड एजेंसी में लग गयी जहां से उन्हें रेडियो सीलोन में रेडियो जॉकी बनने का मौका मिल गया. अलाउंसर के रूप में काम करते हुए वह काफी मशहूर भी हुये.

सुनील एक सफल अलाउंसर के रूप में अपनी पहचान बनाने के बाद कुछ नया करना चाहते थे. सुनील दत्ता को 1955 में बनी फिल्म ‘रेलवे स्‍टेशन’ में ब्रेक मिल गया. यह उनकी पहली फिल्‍म थी, जिसके दो साल बाद साल 1957 में आई ‘मदर इंडिया’ ने उन्हें बालीवुड का फिल्म स्टार बना दिया.सुनील दत्ता ने अपने 40 साल लंबे कैरियर में 20 से ज्यादा फिल्मों में विलेन का रोल किया. उस विलेन की रोल में भी वो खूब जंचते थे. डकैतों के जीवन पर बनी उनकी सबसे बेहतरीन फ़िल्म ‘मुझे जीने दो’ ने उन्हें साल 1964 का फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार भी दिलवाया. साल 1966 में खानदान फिल्म के लिये उन्हें फिर से फिल्मफेयर का सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार प्राप्त हुआ. सुनील दत्त ने 1950 के आखिरी वर्षों से लेकर 1960 के दशक में उन्होंने हिन्दी फिल्म जगत को कई बेहतरीन फिल्में दीं जिनमें साधना (1958), सुजाता (1959), मुझे जीने दो (1963), गुमराह (1963), वक्त (1965), खानदान (1965), पड़ोसन (1967) और हमराज (1967) आदि प्रमुख रूप से उल्लेखनीय हैं.

सुनील दत्‍त की शादी से जुड़ा एक रोचक किस्‍सा है. साल 1957 में महबूब खान की फिल्म मदर इण्डिया का शूटिंग चल रही थी, इस दौरान वहां अचानक आग लग गयी. फिल्‍म एक्‍ट्रेस नरगिस आग में घिर गईं, तभी सुनील दत्त ने अपनी जान की परवाह न करते हुए नरगिस को बचा लिया. इस घटना के बाद इलाज के दौरान सुनील ने पूरे मन से नरगिस का ख्याल रखा और दोनों एक दूसरे के काफी नजदीक आ गये. एक दिन सुनील दत्त ने कार चलाते हुए नरगिस को शादी के लिए प्रपोज कर दिया. नरगिस ने भी मुस्कुराते हुए सुनील दत्त का प्रपोजल स्वीकार कर लिया.

सुनील दत्त ने एक सफल अभिनेता और निर्देशक की पारी खेलने के बाद 1984 में राजनीति ज्‍वॉइन कर ली. वह कांग्रेस पार्टी के टिकट पर मुंबई उत्‍तर पश्‍चिम लोकसभा सीट से चुनाव जीतकर एमपी बने. वह यहां से लगातार पांच बार एमपी चुने गये. सुनील दत्त की मृत्यु के बाद उनकी बेटी प्रिया दत्त यहां की एमपी बनी. सुनील दत्त की जब मौत हुई तब वो भारत सरकार में खेल व युवा मामले का मंत्रालय संभाल रहे थे.

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सामाजिक प्रतिबद्धताओं के लिए भी सुनील दत्त हमेशा आगे रहे. 1987 में पंजाब में खालिस्तान मूवमेंट के तहत ज़बरदस्त हिंसक आंदोलन चल रहा था. तब सुनील दत्त ने महात्मा गांधी के तर्ज पर पदयात्रा करने की सोची और पंजाब में शांति बहाल हो इस उद्देश्य से मुंबई से अमृतसर ( दो हजार किलोमीटर) के लिए महाशांति पदयात्रा पर निकल पड़े. उनके साथ उनकी बेटी प्रिया दत्त समेत 80 और लोग भी थे. उन्होंने यह पूरा सफर पैदल चल कर पूरा किया.

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Author Jitendra Kushwaha

जीतेन्द्र कुशवाहा (Jitendra Kushwaha) ताज़ा बात(tazabat.in) के संस्थापक हैं। वे एक समर्पित और दूरदर्शी व्यक्ति हैं, जिन्होंने यह प्लेटफ़ॉर्म ताजगी और सटीकता से भरी खबरें पाठकों तक पहुँचाने के लिए शुरू किया। जीतेन्द्र का उद्देश्य हमेशा सही और भरोसेमंद जानकारी प्रदान करना है, जिससे पाठकों को हर दिन ताजगी और सटीकता से भरी खबरें मिल सकें।

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